बन्धुवा मजदूर सविंदा कार्मिक
Wednesday 11 June 2014
क्या अच्छे दिन आयेगें बन्धुवा मजदूरो के
संविदा श्रमिक आज के दौर की सच्चाई है
अगर आप संविदा श्रमिक है तो आप इस दर्द को अच्छी तरह से जानते होगें कि किस तरह विकास और आधुनिकता का रावण उनका खून पीकर अपने सोने की लंका को और चमकदार बनाता जा रहा है ।
सबसे दुख की बात तो ये हैकि संविदा श्रमिक अपने हितो की लडाई भी नही लड सकता क्योकि ऐसा करने पर उसकी सविदा समाप्त कर दी जाती है।
धिक्कार है येसी रावणी व्यवस्था पर
कई सालो पर लगातार काम करने पर एक व्यक्ति संविदा पर ही रहता है। और मात्र एक बार सासंद या विधायकी की शपथ लेने वाला ताउमर पेंशन का हकदार हो जाता है।
Wednesday 18 July 2012
करोडपति सांसदो विधायको का देश
अपना भारत महान करोडपति सांसदो विधायको का देया है 62 फीसदी सांसद करोडपति है और गरीब राज्य झारखण्ड के 86 फीसदी विधायक करोडपति । और हमारे योजना आयोग के उपाध्यक्ष कहते है कि 24 रू0 रोज में गरीब आदमी अपना गुजारा कर सकता है
बडे अधिकारियो के घरो में नोट बोरे में रखे जाते है जो सीबीआई के छापो में पता चला है
अब कर लो भारत भाग्य विधाताओं से भारत के भाग्य बदलने की उम्मीद
सबको पता है राजनैतिक वर्ग चाहे वह किसी भी पार्टी से हो और शासकीय कर्मचारियों में यह भावना घर कर गई है कि कोई हमारा क्या बिगाड सकता है हम 100 रू0 का घोटाला करेगें और अगर किसी साजिश के तहत पकडे गये तो 50 रू0 देकर मामला सुलटा लेगें
जनता जाये भाड में जनता के दाता तो राम है सो जनता को हमने राम मन्दिर विवाद दे दिया
दलित और पिछडे में जागरण हो रहा है तो लो उनकेभगवान अम्बेडकर काशींराम और एक जिन्दा देवी दे दिये
ज्यादा किसी ने चूचपड की तो भाडे के लठैत कब काम आयेगें
और अगर समुदायों ने आवाज उठाई तो तालिबान घोषित करा दिया जायेगा
अगर किसी को लगता हैकि देश में गांधी के सपनो को साकार करने की कोशिश की जा रही है तो क़पया मुझे भी समझाने की क़पा करें
गान्धीजी किसी भी समस्या के हल में सबसे पहले गरीबी के अन्तिम छोर पर खडे व्यक्ति के बारे में सोचते थे
और अब हमारे भाग्यविधाता अमीरी के टाप पायदान के व्यक्ति की समस्या के हल केबारे में सोचते है।
बडे अधिकारियो के घरो में नोट बोरे में रखे जाते है जो सीबीआई के छापो में पता चला है
अब कर लो भारत भाग्य विधाताओं से भारत के भाग्य बदलने की उम्मीद
सबको पता है राजनैतिक वर्ग चाहे वह किसी भी पार्टी से हो और शासकीय कर्मचारियों में यह भावना घर कर गई है कि कोई हमारा क्या बिगाड सकता है हम 100 रू0 का घोटाला करेगें और अगर किसी साजिश के तहत पकडे गये तो 50 रू0 देकर मामला सुलटा लेगें
जनता जाये भाड में जनता के दाता तो राम है सो जनता को हमने राम मन्दिर विवाद दे दिया
दलित और पिछडे में जागरण हो रहा है तो लो उनकेभगवान अम्बेडकर काशींराम और एक जिन्दा देवी दे दिये
ज्यादा किसी ने चूचपड की तो भाडे के लठैत कब काम आयेगें
और अगर समुदायों ने आवाज उठाई तो तालिबान घोषित करा दिया जायेगा
अगर किसी को लगता हैकि देश में गांधी के सपनो को साकार करने की कोशिश की जा रही है तो क़पया मुझे भी समझाने की क़पा करें
गान्धीजी किसी भी समस्या के हल में सबसे पहले गरीबी के अन्तिम छोर पर खडे व्यक्ति के बारे में सोचते थे
और अब हमारे भाग्यविधाता अमीरी के टाप पायदान के व्यक्ति की समस्या के हल केबारे में सोचते है।
Wednesday 6 June 2012
contract labour
साथियों ऐसा लगता है कि संविदा मजदूरों की समस्या को कोई भी यूनियन अपनी समस्या नहीं समझती क्योंकि किसी भी स्तर पर पूरे देश में कहीं भी संविदा प्रथा का कोई विरोध नहीं हो रहा है या इसका समाधान खोजा जा रहा हो ऐसा महसूस नहीं हो रहा है
इसका मतलब यहीं है कि या तो संविदा प्रथा कोई दिक्कत या परेशानी की बात नहीं है या फिर हमारा सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि हम इसके चलते समस्यायो से जुडाव महसूस नहीं कर पाते
कोई एक बात तो जरूर सत्य होनी चाहिये
अगर संविदा प्रथा कोई बुरी बात नहीं है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है लेकिन संविदा प्रथा अगर बुरी है और इसका विरोध नहीं हो रहा है तब सोचने की बात ये है कि ये क्या हो रहा है कारपोरेट वर्ग ने हमको कौन सी अफीम पिला दी है कि हम विरोध में सोचने की क्षमता भी गंवा बैठे है
इसका मतलब यहीं है कि या तो संविदा प्रथा कोई दिक्कत या परेशानी की बात नहीं है या फिर हमारा सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि हम इसके चलते समस्यायो से जुडाव महसूस नहीं कर पाते
कोई एक बात तो जरूर सत्य होनी चाहिये
अगर संविदा प्रथा कोई बुरी बात नहीं है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है लेकिन संविदा प्रथा अगर बुरी है और इसका विरोध नहीं हो रहा है तब सोचने की बात ये है कि ये क्या हो रहा है कारपोरेट वर्ग ने हमको कौन सी अफीम पिला दी है कि हम विरोध में सोचने की क्षमता भी गंवा बैठे है
Thursday 1 March 2012
बन्धुवा मजदर बेबस लाचार
साथियों बन्धुवा मजदूर कितना लाचार है इसकी जीती जागती मिसाल राजनैतिक दलो का रवैया है जो हर मसले को अपने वोट बैंक में बदलने को तैयार रहते है चाहे इसके लिये जाति धर्म मन्दिर मस्जिद आरक्षण कुछ भी हो । लेकिन बन्धुवा मजदूरो के नाम पर सभी राजनैतिक दल बोलने से भी कतराते है क्या इन दलो को ये कोई समस्या नहीं लगती या ये दल इससे अनभिज्ञ है या फिर साजिश के तहत चुप है क्योकि फिर कारपोरेट मालिक इनकी ---- में डन्डा दे देगें ।
Tuesday 20 December 2011
19 को हुवा वादा अब्दुलला की भी होगी शादी
19 तारीख को आल इन्डिया डी आर डी ए के दिलली जन्तर मन्तर पर 1 दिवसीय धरने में वादा किया गया कि डी आर डी ए के सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की माँग रखी जायेगी
क्या सच में ऐसा होगा या फिर ये एक लालीपाप है
हमारे नेशनल अध्यक्ष श्री साधुराम कुशला जी एक सुलझे हुये व्यक्ति है अगर उन्होने वादा किया है तो संविदा कर्मचारियों की दुर्दशा को जानते हुये उन्होने इतने बडे मंच कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा हम संविदा कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि हम नेशनल अध्यक्ष को पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करे
हर इमेल को डी आर डी ए के सीधी भर्ती के गुलामों को दे व सुनिश्चित करें कि इमेल का प्रभाव भी हो
साथ ही यह भी कोशिश करें कि हर एम0 पी0 का पत्र डी आर डी ए का बाबू उपलब्ध कराये
हमारा अन्तिम लक्ष्य संविदा प्रथा को समाप्त कराना है क्योकि यह भयानक रूप से श्रमिको का शोषण करती है
शुभकामनाओ के साथ
आपकी तरह बन्धुवा संविदा श्रमिक
क्या सच में ऐसा होगा या फिर ये एक लालीपाप है
हमारे नेशनल अध्यक्ष श्री साधुराम कुशला जी एक सुलझे हुये व्यक्ति है अगर उन्होने वादा किया है तो संविदा कर्मचारियों की दुर्दशा को जानते हुये उन्होने इतने बडे मंच कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा हम संविदा कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि हम नेशनल अध्यक्ष को पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करे
हर इमेल को डी आर डी ए के सीधी भर्ती के गुलामों को दे व सुनिश्चित करें कि इमेल का प्रभाव भी हो
साथ ही यह भी कोशिश करें कि हर एम0 पी0 का पत्र डी आर डी ए का बाबू उपलब्ध कराये
हमारा अन्तिम लक्ष्य संविदा प्रथा को समाप्त कराना है क्योकि यह भयानक रूप से श्रमिको का शोषण करती है
शुभकामनाओ के साथ
आपकी तरह बन्धुवा संविदा श्रमिक
Saturday 17 December 2011
19 को है बेगानी शादी में अब्दुलला दीवाना
डी आर डी ए के बन्धुवा मजदूरो तुम सबको भेड बकरियो की तरह हॉंक कर 19 दिसम्बर को दिलली ले जाया जायेगा जाओ इसमें निराश व हताश होने की कोई बात नहीं है क्योकि जब संविदा श्रमिको का अखिल भारतीय या राज्य स्तरीय कोई संगठन नहीं है तब हमको दूसरो के साथ मिल कर ही अपनी लडाई लडनी है
अच्छी बात यह है कि श्री साधुराम जी ने अपने डाफट में संविदा कर्मचारियों के लिये भी एक पैरा लिखा है जिसके लिये श्री साधुराम कुशला जी बधाई के पात्र है
अब उन्होने ऐसा क्यों किया ये आप लोग उनसे ही जानकारी लेने की कोशिश करना
कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछाल कर देखो यारो
आपकी ही तरह विवश लेकिन बेजुबान नहीं
बन्धुवा मजदूर
अच्छी बात यह है कि श्री साधुराम जी ने अपने डाफट में संविदा कर्मचारियों के लिये भी एक पैरा लिखा है जिसके लिये श्री साधुराम कुशला जी बधाई के पात्र है
अब उन्होने ऐसा क्यों किया ये आप लोग उनसे ही जानकारी लेने की कोशिश करना
कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछाल कर देखो यारो
आपकी ही तरह विवश लेकिन बेजुबान नहीं
बन्धुवा मजदूर
Saturday 3 December 2011
बन्धुवा मजदूरो की नई जमात
साथियों बन्धुवा मजदूरी कोई नई प्रथा नही है यह मानव के लालच से पनपी बुराई है जो मानव इतिहास के साथ साथ अलग अलग रूपो में मौजूद रही है । आज के विकासशील समाज में बन्धुवा मजदूरी का स्वरूप जटिल हो गया है लेकिन शोषण वही पुराना है।
बन्धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्या है जरा विचार करे , एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक । लेकिन अक्सर उसी व्यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्योकि यह संस्थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है। लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्थायित्व नही होता क्योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्थायित्व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्थायित्व का अभाव होगा । यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्थान को उनकी आवश्यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है ।
बन्धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्या है जरा विचार करे , एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक । लेकिन अक्सर उसी व्यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्योकि यह संस्थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है। लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्थायित्व नही होता क्योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्थायित्व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्थायित्व का अभाव होगा । यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्थान को उनकी आवश्यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है ।
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