साथियों ऐसा लगता है कि संविदा मजदूरों की समस्या को कोई भी यूनियन अपनी समस्या नहीं समझती क्योंकि किसी भी स्तर पर पूरे देश में कहीं भी संविदा प्रथा का कोई विरोध नहीं हो रहा है या इसका समाधान खोजा जा रहा हो ऐसा महसूस नहीं हो रहा है
इसका मतलब यहीं है कि या तो संविदा प्रथा कोई दिक्कत या परेशानी की बात नहीं है या फिर हमारा सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि हम इसके चलते समस्यायो से जुडाव महसूस नहीं कर पाते
कोई एक बात तो जरूर सत्य होनी चाहिये
अगर संविदा प्रथा कोई बुरी बात नहीं है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है लेकिन संविदा प्रथा अगर बुरी है और इसका विरोध नहीं हो रहा है तब सोचने की बात ये है कि ये क्या हो रहा है कारपोरेट वर्ग ने हमको कौन सी अफीम पिला दी है कि हम विरोध में सोचने की क्षमता भी गंवा बैठे है
इसका मतलब यहीं है कि या तो संविदा प्रथा कोई दिक्कत या परेशानी की बात नहीं है या फिर हमारा सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि हम इसके चलते समस्यायो से जुडाव महसूस नहीं कर पाते
कोई एक बात तो जरूर सत्य होनी चाहिये
अगर संविदा प्रथा कोई बुरी बात नहीं है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है लेकिन संविदा प्रथा अगर बुरी है और इसका विरोध नहीं हो रहा है तब सोचने की बात ये है कि ये क्या हो रहा है कारपोरेट वर्ग ने हमको कौन सी अफीम पिला दी है कि हम विरोध में सोचने की क्षमता भी गंवा बैठे है