Wednesday 18 July 2012

करोडपति सांसदो विधायको का देश

अपना भारत महान करोडपति सांसदो विधायको का देया है 62 फीसदी सांसद करोडपति है और गरीब राज्‍य झारखण्‍ड के 86 फीसदी विधायक करोडपति । और हमारे योजना आयोग के उपाध्‍यक्ष कहते है कि 24 रू0 रोज में गरीब आदमी अपना गुजारा कर सकता है
बडे अधिकारियो के घरो में नोट बोरे में रखे जाते है जो सीबीआई के छापो में पता चला है
अब कर लो भारत भाग्‍य विधाताओं से भारत के भाग्‍य बदलने की उम्‍मीद
सबको पता है राजनैतिक वर्ग चाहे  वह किसी भी पार्टी से हो और शासकीय कर्मचारियों में यह भावना घर कर गई है कि कोई हमारा क्‍या बिगाड सकता है हम 100 रू0 का घोटाला करेगें और अगर किसी साजिश के तहत पकडे गये तो 50 रू0 देकर मामला सुलटा लेगें
जनता जाये भाड में जनता के दाता तो राम है सो जनता को हमने राम मन्दिर विवाद दे दिया
दलित और पिछडे में जागरण हो रहा है तो लो उनकेभगवान अम्‍बेडकर काशींराम और एक जिन्‍दा देवी दे दिये
ज्‍यादा किसी ने चूचपड की तो भाडे के लठैत कब काम आयेगें
और अगर समुदायों ने आवाज उठाई तो तालिबान घोषित करा दिया जायेगा
अगर किसी को लगता हैकि देश में गांधी के सपनो को साकार करने की कोशिश की जा रही है तो क़पया मुझे भी समझाने की क़पा करें

गान्‍धीजी किसी भी समस्‍या के हल में सबसे पहले गरीबी के अन्तिम छोर पर खडे व्‍यक्ति के बारे में सोचते थे
और अब हमारे भाग्‍यविधाता अमीरी के टाप पायदान के व्‍यक्ति की समस्‍या के हल केबारे में सोचते है।

Wednesday 6 June 2012

contract labour

साथियों ऐसा लगता है कि संविदा मजदूरों की समस्‍या को कोई भी यूनियन अपनी समस्‍या नहीं समझती क्‍योंकि किसी भी स्‍तर पर पूरे देश में कहीं भी संविदा प्रथा का कोई विरोध नहीं हो रहा है या इसका समाधान खोजा जा रहा हो ऐसा महसूस नहीं हो रहा है
इसका मतलब यहीं है कि या तो संविदा प्रथा कोई दिक्‍कत या परेशानी की बात नहीं है या फिर हमारा सिस्‍टम ही ऐसा हो गया है कि हम इसके चलते समस्‍यायो से जुडाव महसूस नहीं कर पाते
कोई एक बात तो जरूर सत्‍य होनी चाहिये
अगर संविदा प्रथा कोई बुरी बात नहीं है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है  लेकिन संविदा प्रथा अगर बुरी है और इसका विरोध नहीं हो रहा है तब सोचने की  बात ये है कि  ये क्‍या हो रहा है कारपोरेट वर्ग ने हमको कौन सी अफीम पिला दी है कि हम विरोध में सोचने की क्षमता भी गंवा बैठे है

Thursday 1 March 2012

बन्‍धुवा मजदर बेबस लाचार

साथियों बन्‍धुवा मजदूर कितना लाचार है इसकी जीती जागती मिसाल राजनैतिक दलो का रवैया है जो हर मसले को अपने वोट बैंक में बदलने को तैयार रहते है चाहे इसके लिये जाति धर्म मन्दिर मस्जिद  आरक्षण कुछ भी हो । लेकिन बन्‍धुवा मजदूरो के नाम पर सभी राजनैतिक दल   बोलने से भी कतराते है क्‍या इन दलो को ये कोई समस्‍या नहीं लगती या ये दल इससे अनभिज्ञ है या फिर साजिश के तहत चुप है क्‍योकि फिर कारपोरेट मालिक इनकी ---- में डन्‍डा दे देगें ।