Tuesday 20 December 2011

19 को हुवा वादा अब्‍दुलला की भी होगी शादी

19 तारीख को आल इन्डिया डी आर डी ए के दिलली जन्‍तर मन्‍तर पर 1 दिवसीय धरने में वादा किया गया कि डी आर डी ए के सभी संविदा कर्मचारियों   को नियमित करने की माँग रखी जायेगी

क्‍या सच में ऐसा होगा या फिर ये एक लालीपाप है
हमारे नेशनल अध्‍यक्ष श्री साधुराम कुशला जी एक सुलझे हुये व्‍यक्ति है अगर उन्‍होने वादा किया है तो संविदा कर्मचारियों की दुर्दशा को जानते हुये उन्‍होने इतने बडे मंच कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा हम संविदा कर्मचारियों का दायित्‍व बनता है कि हम नेशनल अध्‍यक्ष को पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करे
हर इमेल को डी आर डी ए के सीधी भर्ती के गुलामों को दे व सुनिश्चित करें कि इमेल का प्रभाव भी हो

साथ ही यह भी कोशिश करें कि हर एम0 पी0 का पत्र डी आर डी ए का बाबू उपलब्‍ध कराये



हमारा अन्तिम लक्ष्‍य संविदा प्रथा को समाप्‍त कराना है क्‍योकि यह भयानक रूप से श्रमिको का शोषण करती है

शुभकामनाओ  के साथ

आपकी तरह बन्‍धुवा संविदा श्रमिक

Saturday 17 December 2011

19 को है बेगानी शादी में अब्‍दुलला दीवाना

डी आर डी ए के बन्‍धुवा मजदूरो  तुम सबको भेड बकरियो की तरह हॉंक कर 19 दिसम्‍बर को दिलली ले जाया जायेगा   जाओ इसमें निराश व हताश होने की कोई बात नहीं है क्‍योकि जब संविदा श्रमिको का अखिल भारतीय या राज्‍य स्‍तरीय कोई संगठन नहीं है तब हमको दूसरो के साथ मिल कर ही अपनी लडाई लडनी है
अच्‍छी बात यह है कि श्री साधुराम जी ने अपने डाफट में संविदा कर्मचारियों के लिये भी एक पैरा लिखा है जिसके लिये श्री साधुराम कुशला जी बधाई के पात्र है

अब उन्‍होने ऐसा क्‍यों किया ये आप लोग उनसे ही जानकारी लेने की कोशिश करना

कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता
एक पत्‍थर तो तबीयत से उछाल कर देखो यारो


आपकी ही तरह विवश लेकिन बेजुबान नहीं

बन्‍धुवा मजदूर

Saturday 3 December 2011

बन्‍धुवा मजदूरो की नई जमात

साथियों बन्‍धुवा मजदूरी कोई नई प्रथा नही है यह मानव के लालच से पनपी बुराई है जो मानव इतिहास के साथ साथ अलग अलग रूपो में मौजूद रही है । आज के विकासशील समाज में बन्‍धुवा मजदूरी का स्‍वरूप जटिल हो गया है लेकिन शोषण वही पुराना है।
बन्‍धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्‍या है जरा विचार करे ,  एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक ।  लेकिन अक्‍सर उसी व्‍यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्‍योकि यह  संस्‍थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है।  लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्‍योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्‍थायित्‍व नही होता क्‍योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्‍थायित्‍व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्‍थायित्‍व का अभाव होगा ।  यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्‍याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्‍त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्‍त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्‍यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्‍थान को उनकी आवश्‍यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है ।