साथियों बन्धुवा मजदूरी कोई नई प्रथा नही है यह मानव के लालच से पनपी बुराई है जो मानव इतिहास के साथ साथ अलग अलग रूपो में मौजूद रही है । आज के विकासशील समाज में बन्धुवा मजदूरी का स्वरूप जटिल हो गया है लेकिन शोषण वही पुराना है।
बन्धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्या है जरा विचार करे , एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक । लेकिन अक्सर उसी व्यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्योकि यह संस्थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है। लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्थायित्व नही होता क्योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्थायित्व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्थायित्व का अभाव होगा । यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्थान को उनकी आवश्यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है ।
बन्धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्या है जरा विचार करे , एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक । लेकिन अक्सर उसी व्यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्योकि यह संस्थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है। लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्थायित्व नही होता क्योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्थायित्व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्थायित्व का अभाव होगा । यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्थान को उनकी आवश्यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है ।
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