Tuesday 20 December 2011

19 को हुवा वादा अब्‍दुलला की भी होगी शादी

19 तारीख को आल इन्डिया डी आर डी ए के दिलली जन्‍तर मन्‍तर पर 1 दिवसीय धरने में वादा किया गया कि डी आर डी ए के सभी संविदा कर्मचारियों   को नियमित करने की माँग रखी जायेगी

क्‍या सच में ऐसा होगा या फिर ये एक लालीपाप है
हमारे नेशनल अध्‍यक्ष श्री साधुराम कुशला जी एक सुलझे हुये व्‍यक्ति है अगर उन्‍होने वादा किया है तो संविदा कर्मचारियों की दुर्दशा को जानते हुये उन्‍होने इतने बडे मंच कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा हम संविदा कर्मचारियों का दायित्‍व बनता है कि हम नेशनल अध्‍यक्ष को पूर्ण सहयोग देने की कोशिश करे
हर इमेल को डी आर डी ए के सीधी भर्ती के गुलामों को दे व सुनिश्चित करें कि इमेल का प्रभाव भी हो

साथ ही यह भी कोशिश करें कि हर एम0 पी0 का पत्र डी आर डी ए का बाबू उपलब्‍ध कराये



हमारा अन्तिम लक्ष्‍य संविदा प्रथा को समाप्‍त कराना है क्‍योकि यह भयानक रूप से श्रमिको का शोषण करती है

शुभकामनाओ  के साथ

आपकी तरह बन्‍धुवा संविदा श्रमिक

Saturday 17 December 2011

19 को है बेगानी शादी में अब्‍दुलला दीवाना

डी आर डी ए के बन्‍धुवा मजदूरो  तुम सबको भेड बकरियो की तरह हॉंक कर 19 दिसम्‍बर को दिलली ले जाया जायेगा   जाओ इसमें निराश व हताश होने की कोई बात नहीं है क्‍योकि जब संविदा श्रमिको का अखिल भारतीय या राज्‍य स्‍तरीय कोई संगठन नहीं है तब हमको दूसरो के साथ मिल कर ही अपनी लडाई लडनी है
अच्‍छी बात यह है कि श्री साधुराम जी ने अपने डाफट में संविदा कर्मचारियों के लिये भी एक पैरा लिखा है जिसके लिये श्री साधुराम कुशला जी बधाई के पात्र है

अब उन्‍होने ऐसा क्‍यों किया ये आप लोग उनसे ही जानकारी लेने की कोशिश करना

कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता
एक पत्‍थर तो तबीयत से उछाल कर देखो यारो


आपकी ही तरह विवश लेकिन बेजुबान नहीं

बन्‍धुवा मजदूर

Saturday 3 December 2011

बन्‍धुवा मजदूरो की नई जमात

साथियों बन्‍धुवा मजदूरी कोई नई प्रथा नही है यह मानव के लालच से पनपी बुराई है जो मानव इतिहास के साथ साथ अलग अलग रूपो में मौजूद रही है । आज के विकासशील समाज में बन्‍धुवा मजदूरी का स्‍वरूप जटिल हो गया है लेकिन शोषण वही पुराना है।
बन्‍धुवा मजदूरी का सबसे जटिल रूप संविदा श्रमिक के रूप में समाज के सामने आया है।
संविदा श्रमिक होता क्‍या है जरा विचार करे ,  एक निश्चित समय अवधि के लिये लिया गया श्रमिक ।  लेकिन अक्‍सर उसी व्‍यक्ति को सालो साल संविदा के तहत कार्य करने दिया जाता है क्‍योकि यह  संस्‍थान व कारपोरेट वर्ग के हित में होता है।  लेकिन बरसो बरस एक ही पद पर कार्य करते रहने को मजबूर संविदा श्रमिक का कोई हित सोचने वाला भी नही होता क्‍योकि उनकी यूनियन नही होती अगर वे यूनियन बना भी ले लो यूनियन में भी स्‍थायित्‍व नही होता क्‍योकि जब संविदा श्रमिको के रोजगार में स्‍थायित्‍व का अभाव है तो उनके द्वारा बनाई गई यूनियन में भी स्‍थायित्‍व का अभाव होगा ।  यह बात सीधे सीधे पूंजीपति व कारपोरेट लुटेरो के हक में जाती है कि श्रमिक यूनियने मजबूत न हो।
इसके अलावा संविदा श्रमिको का हित करने में शासक वर्ग व राजनैतिक समाज भी आगे नहीं आता क्‍याकि संविदा श्रमिको के पास यूनियन व वोट पावर का अभाव होता है।
संविदा श्रमिको का शोषण तब तक तो बरदास्‍त के काबिल है जब उनको एक निश्चित समय के लिये संविदा श्रमिक बनाया जाता है जैसे 9 महीने या 2 साल या 5 साल तब भी बरदास्‍त किया जा सकता है लेकिन जब सालो साल एक ही व्‍यक्ति एक ही पद पर 10 साल या 15 सालो से संविदा श्रमिको के रूप में सेवाये दे रहा हो तो संस्‍थान को उनकी आवश्‍यकता है यह बात सिद्व हो जाती है फिर उस पद पर उनको संविदा पर कार्यरत रखना किसके हित में जाता है यह जानना कोई मुश्किल सवाल नहीं है । 

Wednesday 30 November 2011

वाल स्‍ट़ीट पर कब्‍जा करो

वाल स्‍ट़ीट पर कब्‍जा करो नाम का जो आन्‍दोलन अमेरिका में चल रहा है इसके पीछे मुख्‍यत कारपोरेट वर्ग की बेइन्‍तहा लालच के खिलाफ नफरत काम कर रही है पूरे विश्‍व के संसाधनो को लूटा जा रहा है मात्र चन्‍द लोगो द्वारा और नारा लोकतन्‍त्र का लगाया जा रहा है ये पोल अब शोषक वर्ग की विकसित देशो की जनता जान चुकी है ।

कारपोरेट वर्ग की लूट अपने देश में भी बेइन्‍तहा है उदाहरण के तौर पर एक तेल कम्‍पनी को तेल क्षेत्र आंवटित किया जाता है फिर उसके दोहन के लिये सरकार से कम्‍पनी फन्‍ड लेती है और नुकसान होने की स्थिति में आंवटित फन्‍ड माफ करवाती है और फायदा होने की स्थिति में मुनाफा कम्‍पनी का होता है ।

सरल शब्‍दो में जमीन सरकार की , हल बैल बीज और मजदूरी का पैसा सरकार का , अपना तो केवल इन्‍तजाम यानी दलाली का काम :  अपनी हाई सेलरी और मौज मस्‍ती तो चलती रहेगी *  फसल होने के बाद फसल हम अपनी मर्जी से बेचेगें चाहे जिसको बेचें ,   अगर फसल खराब हो गई या अकाल पड गया तो सरकार बेल आउट पैकेज दे यानी सब माफ कर दे

कितना चोखा काम है कारपोरेट वर्ग का

Friday 4 November 2011

मनरेगा के कम्‍प्‍यूटर आपरेटर ने जीते 5 करोड

मनरेगा के कम्‍प्‍यूटर आपरेटर सुशील कुमार ने जीते 5 करोड
साथियो मैने पहले ही कहा था कि मनरेगा के त‍हत सबसे ज्‍यादा बन्‍धुवा मजदूर है और उनमें भी कम्‍प्‍यूटर कार्मिक सबसे ज्‍यादा है जबकि वे सबसे ज्‍यादा शिक्षित व तार्किक व विश्‍लेषणात्‍मक है । ये बात बिहार के कम्‍प्‍यूटर आपरेटर श्री सुशील कुमार ने साबित कर दी है सुशील कुमार को बधाई कि वे बन्‍धुवा मजदूरी के जाल से आजाद हुये बधाई हो सुशील जी

Thursday 20 October 2011

नई सदी के अछूत

साथियों मुझे कुछ मेल मिले है जिसमें उन पर होने वाले अन्‍याय का जिक्र किया गया है मित्रो सभी की यही कहानी है कोई कम या फिर कोई ज्‍यादा , पीडित सभी है । मेरा मानना है कि दो चार साथियों की समस्‍या दूर होने से मूल समस्‍या बनी रहेगी और नये नये नौजवान उन पदो पर खुशी खुशी आने को तैयार रहेगें और कीमती साल गुलामी में बिता देने को तैयार रहेगें ।
तब साथियों इस समस्‍या का हल क्‍या है मेरा आपसे अनुरोध है कि सोचे और गहनता से विचार करे क्‍योकि आपकी सोच पर तो पहरा नहीं है मेरी राय हैकि आप जहॉं तक सम्‍भ्‍ाव हो हर उस स्‍तर पर संविदा प्रथा के खिलाफ आवाज उठायें ।
आप अपने अनुभव से जानते हैकि आप के संग अछूतो जैसा व्‍यवहार किया जाता है और आने वाले समय में ये समस्‍या बढने ही वाली है

अत:  मेरी राय है कि हमको अछूत बनाने वाली इस संविदा प्रथा का हम आने वाली पीढी के हित में विरोध करें।
आपकी राय का इच्‍छुक
एक अछूत बन्‍धुवा   संविदा श्रमिक

Wednesday 12 October 2011

षडयन्‍त्र

शोषक समाज आम जनता के साथ किस किस तरह से षडयन्‍त्र करके उनका शोषण करता है इसका आज मै एक छोटा सा उदाहरण देना चाहता हूँ ।

नृत्‍य तथा संगीत
नृत्‍य तथा संगीत सांस्‍कृतिक कलायें है किन्‍तु शोषक वर्ग के हाथों में जाकर और राज्‍य द्वारा कोई नियन्‍त्रण न होने के कारण यह वासनाप्रधान कलाओं में तब्‍दील हो गई है।  नृत्‍य तथा संगीत  सास्‍ंक;तिक कला होने के कारण बाल ,वृद्व,  व नर नारी सभी के मन में इनके लिये रूचि उत्‍पन्‍न की जाती है।  तथा इनमें चुपके से वासना की चाशनी मिला दी जाती है । जिससे इन कलाओं के वासनामय होने के कारण समाज में वासना व्‍याप्‍त होने लगती है। और इसका दुष्‍प्रभाव सबसे ज्‍यादा बच्‍चो और श्रमिक वर्ग पर पडता है।
तथा वासनात्‍मक कार्यो के लिये धन की आवश्‍यकता होती है और अतिरिक्‍त धन सही कार्यो से नहीं मिलता फलस्‍वरूप अतिरिक्‍त धन के लिये  अधर्मयुक्‍त उपाय प्रयोग में लाये जाते है। जिससे समाज का नैतिक पतन हो जाता है और वह शोषक वर्ग व रूलिंग वर्ग के अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति खो देता है।  और तब वह केवल और केवल धन के पीछे दौडने लगता है तब शोषक वर्ग उसका आसानी से शोषण करने में सक्षम हो जाता है।

Wednesday 5 October 2011

मूल विषय

मेरा मूल विषय संविदा श्रमिको का शोषण है। संविदा श्रमिक सभी क्षेत्रो में है  और रूलिंग क्‍लास उनकी इस अवस्‍था से अनजान है । तथा शोषक वर्ग विकास व देश हित के नाम पर उनका भयानक शोषण कर रहा है। शोषक वर्ग प्रगति व विकास के नाम पर रूलिंग क्‍लास को भ्रमित कर संविदा प्रथा के नाम पर नई बंधुवा मजदूरी को चलन में लाने में सफल रहा है तथा श्रमिक अशान्ति, तालाबन्‍दी व कामजोरी के नाम पर संविदा प्रथा को उत्‍तम उपचार बताने में कामयाब रहा है।
देश और विकास के लिये यह उचित है कि जो श्रमिक कामजोरी करते है उनको हटकर सही श्रमिको को रखा जाना चाहिये इसकी व्‍यवस्‍था की जानी चाहिये लेकिन इसके नाम पर सभी श्रमिको को एक ही तराजू में तोलना अनुचित है।  यक्षप्रश्‍न यह है कि जो श्रमिक अपनी सारी जवानी किसी संस्‍थान उघोग में दे चुका हो क्‍या उसके साथ ऐसी प्रथा संविदा का उपयोग करना चाहिये ।
जब एक श्रमिक एक ही संस्‍थान में लगातार कई वर्षो से संविदा पर कार्यरत हो तो ये माना जाना चाहिये कि श्रमिक अपना कार्य उचित तरीके से कर रहा है तभी प्रबन्‍धन उसके कार्यकाल को बढाता जा रहा है। तथा श्रमिक की आवश्‍यकता भी संस्‍थान को लगातार है। इसके पश्‍चात भी यदि श्रमिक को संविदा पर ही कार्य करना पड रहा है तो यह बात साफ साफ शोषक वर्ग के शक्तिशाली होने व उनके हित में जाती है।
देश में बेरोजगारो की विशाल संख्‍या को देखते हुये शोषक वर्ग लालायित है कि किस तरह से इस बेरोजगारी को अपने मुनाफे में तब्‍दील कर लिया जाये , शोषक वर्ग को विशाल बेरोजगारी एक कच्‍चे माल की तरह लगती है जिसको वह अपने मुनाफे में बदल रहा है।
संविदा श्रमिक वर्ग के लिये इसका बुरा पहलू यह है कि विशाल बेरोजगारो की कतार देख कर वह जैसे तैसे अपनी वर्तमान रोजगार की स्थिति को बचाये रखना चाहता है और अन्‍तत: उम्र बढ जाने पर दूध में से मक्‍खी की तरह फेंक दिया जाता है  जबकि अब उसके साथ स्‍वास्‍थ्‍य और उम्र भी नहीं होती ।
ये स्थिति ठीक ठीक व्‍यभिचार की तरह है जब कोई व्‍यभिचारी व्‍यक्ति किसी स्‍त्री की जवानी का उपभोग करने के बाद स्‍त्री की आयु ढल जाने पर उसका त्‍याग कर नई स्‍त्री के साथ हो जाता है।
शोषक वर्ग ठीक इसी तरह से श्रमिक वर्ग के साथ खुलेआम सामाजिक व्‍यभिचार संविदा प्रथा के नाम पर कर रहा है और हमारा रूलिंग वर्ग   आँख बन्‍द कर व्‍यभिचारी को प्रोत्‍साहन दे रहा है।
जब हम सभ्‍य समाज देश के विकास प्रगति की बात करते है तो संविंदा श्रमिको के साथ होने वाले इस सामाजिक पापकर्म को किस तरह से उचित ठहरा सकते है।    जबकि हर कोई व्‍यक्तिगत जीवन में इस तरह के व्‍यभिचार को गलत मानता है।


सभी सज्‍जनो और हर एक पवित्र व्‍यक्ति को याद रखना चाहिये  कि अन्‍धे रूलिंग वर्ग (   धतराष्‍ट , भीष्‍म )  की सज्‍जनता के बाद भी शोषक वर्ग ( दुर्योघन आदि ) ने जब वाजिब से कम मात्र जीवनयापन के लिये आवश्‍यक ( 5 गांव ) भी नहीं दिये तो पक्ष विपक्ष ही नहीं गेहूँ के साथ घुन भी उस महासग्राम की भेंट चढ गये थे

Tuesday 4 October 2011

अमरीका का श्रमिक भी जाग रहा है

द ग्रेट अमरीका जिसने द्वितीय विश्‍व यूद्व जीता , परम बलशाली सोवियत यूनियन को ध्‍राशायी किया ,  और भूसे में सुई की तरह छिपे ओसामा को भी ढूढ निकाला । अब अपनी जनता से उसको चुनौती मिलने की सम्‍भावना है  क्‍योकि श्रमिक वर्ग की समस्‍याये हर देश हर समाज में एक जैसी होती है । ये तो हो सकता कि आप उसे किसी नशे का गुलाम बनाकर कुछ समय तक भुलावे में रखे पर आखिरकार उसकी ऑंख खुलनी तय है अब नशा चाहे धर्म का हो या देशभक्ति का या फिर अपनी जातीय श्रेष्‍ठता का । पर हर नशा टूटता है और मेरी आशा है कि ग्रेट अमरीका के श्रमिको का नशा भी टूटे। और उनको पता चले कि द ग्रेट अमेरिका के नाम पर शोषक वर्ग ने अमेरिका के श्रमिको का शोषण किया और साथ ही साथ पूरे विश्‍व का ठगा है और अमेरिका के आदर्शो की धज्जिया उडाई है।

Monday 3 October 2011

बॉंटो और राज करो

सरकार या सरकारो को नियन्त्रित कर रहा पूजीपति वर्ग साफ तौर पर बॉंटो ओर राज करो और सारे संसाधन लूट लो की नीति पर चल रहा है । अगर किसी को इसमें संशय है तो उसे ऑंख खोलकर चारो तरफ देखना होगा
खासतौर पर जनसामान्‍य की जीवन शैली , उनका स्‍वास्‍थ्‍य , शिक्षा की स्थिति और रोजगार की उपलब्‍धता तथा कार्य करने की स्थितियॉं

इन सब बातो पर गौर करने के पश्‍चात ये एहसास होता है कि जनसामान्‍य खासतौर पर श्रमिक वग्र का शोषण पूजापति द्वारा किया जा रहा है
शोषण करने के लिये सर्वप्रथम शोषित वर्ग को पहले बॉंट दिया जाता है यह सार्वभौमिक नियम है जो आदिकाल से पूँजीपति वर्ग द्वारा प्रयोग किया जा रहा है।
आधुनिक काल में श्रमिक वर्ग को इस तरह से बॉटा जाता है कि श्रमिक वर्ग ये एहसास ही नही कर पाता कि वह श्रमिक वर्ग में है।
तत्‍पश्‍चात श्रमिको को सरकारी , अर्द्वसरकारी व प्राइवेट कर्मवारियों के मोटे वर्ग में बॉंट दिया गया है।
इसके पश्‍चात प्रत्‍येक वर्ग को स्‍थायी, अस्‍थायी, आकस्मिक , संविदा व दैनिक वेतन भोगी में विभाजित कर दिया जाता है।

इसके पश्‍चात श्रमिको के संगठनो को राजनैतिक विचारधारा के नाम पर बॉंट दिया जाता है।
फिर इन संगठनों के अन्‍दर धर्म जाति और क्षेत्र के आधार पर विभाजन तय किया जाता है कहने का तात्‍पर्य यह है कि यह पूर्ण सुनिश्चित किया जाता है कि श्रमिको में एका न हो पाये ।

पूंजीपति और शासक वर्ग द्वारा इसके पश्‍चात भी प्रयत्‍न किये जाते है कि आम जन जागरूक न हो पाये । इसके लिये जनता के लिये नशे का इन्‍तजाम किया जाता है ठीक उसी तरह जिस तरह फिल्‍म नरसिम्‍हॉं में हीरो के नशे की व्‍यवस्‍था की जाती है ।
आम जन को बेहोशी में रखकर उस पर शासन करने की पुरानी पद्वति के अनुसार ही आज के शासक भी
1-  24 घन्‍टे कूल्‍हे मटकाती मेनकाओं के आभासी चित्र पट दिखाकर आम जन को धाखे में रखती है
2-  जनता का शासन जनता केलिये जनता द्वारा  के नाम पर शासक वर्ग अपने संरक्षण में नशीली वस्‍तुओं की मंडी लगाता है नाम चाहे कुछ भी हो । और ये सब जनहित के नाम पर होता है।
3- इसके पश्‍चात आम जन को अपने पक्ष में करने के लिये इस धारणा को फैलाता है कि धन सम्‍पत्ति ही सब कुछ है यही मानव का अन्तिम लक्ष्‍य है। इसके लिये चाहे अपनो का हक मारो या आश्रितो को निराश्रित छोड दो । जहॉं सम्‍भव हो सके जिस तरह से सम्‍भव हो जल्‍दी से जल्‍दी पैसा बनाओ चाहे भष्‍टाचार करो चाहे कुछ भी करो बस पैसा पास में होना चाहिये ।
चाहे मिलावटी सामान बेचो चाहे जंगल काटो चाहे हजारो लाखों लोगो के जीवन को नारकीय बना दो ।

मै कुछ विषय से ज्‍यादा ही भटक गया हूँ
वापस मूल विषय पर लौटते है मूल विषय क्‍या है
शासक वर्ग द्वारा श्रमिक वर्ग का शोषण
उदाहरण -  शासक वर्ग द्वारा वर्तमान सविंदा व आकस्मिक व दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियो का जन्‍म

जबकि शासक वर्ग एक बार सांसद व विधायक बन जाने के बाद आजीवन पेशन व अन्‍य सुविधाये पाने का हकदार हो जाता  है ।

अधिकतर सांसद व विधायक श्रमिक वर्ग से ही आते है लेकिन पूंजीपति वर्ग इनको अपने मूल वर्ग से काट देता है और इनकी आड लेकर शासन करता है

फिर मै विषय से भटक गया हूँ

बाकी फिर कभी
आपका
आपकी तरह

Saturday 1 October 2011

सविंदा कार्मिक

समाजवादी लोकतन्‍त्र का दावा करने वाले देश की सरकार देश की बेरोजगारी दूर करने के लिये क्‍या प्रयास कर रहीहै इसकी पोल इसी बात से खुल जाती है कि देश में सविंदा प्रथा को बढावा दिया जा रहा है ।
रोजगार व्‍यक्ति की प्राथमिक आवश्‍यकताओ , सामाजिक दायित्‍वों एवं स्‍तर को निर्धारित करता है यदि सक्षम व्‍यक्ति को कार्य नहीं मिलता हे तो समाज उसे हेय दृष्टि से देखने लगता है बेरोजगार स्‍वंय को भी हीन समझने लगता है
आजकल देश के विभिन्‍न विभागो और राज्‍य सरकारो के विभागो में तथा सरकारी , अर्धसरकारी व प्राइवेट कम्‍पनियों में सविंदा पर देश का युवा कार्य करने को विवश है ।
अक्‍सर सेवा प्रदाता नई भर्तिया कर लेता है जिसमे पैसे व आयु का बडा रोल होता है
सविंदा मजदूरी और कुछ नहीं बल्कि बंधुवा मजदूरी का विकसित रूप है
क्‍योकि सविंदा मजदूरी में मजदूर की कम कीमत लगाई जाती है , सेवायोजक अतिरिक्‍त लाभ नही देते, अवकाश के दिनो मेंभी कार्य लिया जाता है सबसे बुरी बात अगले वर्ष सविंदा न होने की अव्‍यक्‍त धमकी दे कर मानसिंक उत्‍पीडन किया जाता है
सविंदा श्रमिक अक्‍सर अपने पारिवारिक उत्‍तरदायित्‍व पूरे नही कर पाते क्‍योकि सेवायोजक की संविदा रूपी तलवार हमेशा उनके सामने रहती है

समस्‍त सरकारी व प्राइवेट संस्‍थानो में कार्य की अपेक्षा कर्मचारियों की सख्‍ंया कम है ऐसी स्थिति में कार्य का बोझ सविंदा श्रमिको पर ही पडता है   ।   सविंदा श्रमिक आने वाले स्‍थयित्‍व को लेकर हर समय सशंकित रहते है क्‍योकि धन कमाने की एक आयु होती है और उनके जीवन का अधिकतर समय अल्‍प वेतन और आने वाली बेरोजगारी के भय तले ही गुजर जाता है

सरकार द्वारा रोजगार देने की ये विधि युवाओ के लिये नरक तुल्‍य अभिशाप बन चुकी है
सबसे बडा दुख ये है कि करोडो युवाओ की यह समस्‍या न तो कोई श्रमिक यूनियन उठाती है न मीडिया और न  ही खुद संविदा कर्मी इस समस्‍या को उठाने का साहस कर पाते है क्‍योकि वे आनेवाली बेरोजगारी के भय से चुप रहते है

श्रमिक यूनियने इस समय खुद मृतप्राय हो चुकी है और वे खुद भी संविदा कार्मिको को अपना सदस्‍य नहीं मानती ।

भारतीय संविधान बंधुवा मजदूरी को तो गैरकानूनी मानता है लेकिन बंधुवा मजदूरी के परिष्‍तृत संस्‍करण  के बारे में चुप है  साफ जाहिर है कि पूजीपति वर्ग ने सविंधान को धोखा देने में कामयाबी हासिल की है

लोकप्रिय सरकारो को चाहिये कि यदि किसी काम विशेष को करने के लिये श्रमिको की आवश्‍यकता निरन्‍तर कम से कम 5 वर्षे से है तो उस कार्य के लिये सविंदा और आकस्मिक श्रमिको की भर्ती को अपराध माना जायें और इसअपराध के लिये दोषी अधिकारियों के विरूद्व बधुवा मजदूरी को बढावा देने का दोष लगाया जाये  तथा 5 वर्षो से अधिक समय से कार्य कर रहे समस्‍त आकस्मिक व संविदा कर्मचारियों को नियमित घोषित किया जाये
अन्‍यथा सविंधान का पालन करानी वाली शक्तियों को चाहिये कि वो बंधुवा मजदूरी के इस रूप पर ध्‍यान दे   और युवाओं को नये तरीकों से बंधुवा मजदूर बनाने वाले समस्‍त कारको को समाप्‍त कराये
नहीं तो इन युवाओं के लिये सविंधान के बंधुवा मजदूरी उन्‍मूलन 1976 का क्‍या मतलब
या फिर गुलामो के कोई हक नही होते
 
आज 2 अक्‍टूबर है
 
आज हम सारे सविंदा और आकस्मिक कर्मचारियों के नाम से जाने जाते वाले बधूंवा मजदूर  दिल से याद करते है कि कि काश कोई गॉंधी हमें भी आजादी दिलाता

contract labour

मेरा सभी सविंदा कार्मिको contract labour  से आवाहन है कि वो अपनी मॉंग व समस्‍याये देश जनता व मीडिया के सामने रखे अन्‍यथा ये समस्‍या श्रमिक वर्ग के लिये नासूर बन जायेगी

आजकल कर कारखाना हर सरकारी विभाग हर कारपोरेट घराना बन्‍धुवा मजदूरो के रूप में सविंदा प्रथा को बढावा दे रहा है
अगर अपनी आने वाली नस्‍लो को बंधुवा मजदूर बनने से बचाना है तो हर सम्‍भव मंच पर सविंदा प्रथा के खिलाफ बोलिये और लिखिये

हम  सविंदा कर्मी तो अपनी जिन्‍दगी बरबाद कर चुके पर आने वाली पीढी को वो सब न भोगना पडे बरदास्‍त करना पडे जो हमने सहा   इसलिये मेरी सभी सविंदा कर्मियो से हाथ जोड कर निवेदन है कि इस कु्र अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठायें

contract labour

सविंदा कार्मिक की जरूरत क्‍यों है

सामान्‍यत सरकार और देश का यह कर्तव्‍य है कि वह अपने निवासियो का रोटी कपडा और मकान की मूलभूत जरूरतों का पूरा करे तथा उनका शारीरिक और मानसिक उत्‍थान में सहायक हो
क्‍या आज हमारे देश में कोई भी सरकार इस दिशा में कार्य करती दिख रही है
उल्‍टे ऐसा प्रतीत होता है कि नई बन्‍धुवा गुलामी की दिशा में हर सरकार और हर कारपोरेट संस्‍थान कार्य कर रहे है
क्‍योकि संविदा कार्मिक से कभी भी पीछा छुडाया जा सकता है और उनको भयभीत करके शोषण किया जा सकता है
अगर सविंदा कार्मिक प्रथा उत्‍तम है तो फिर सरकार को तुरन्‍त प्रभाव से अन्‍य तरह की भर्ती पर रोक लगा देनी चाहिये और केवल और केवल सविंदा प्रथा से ही कार्मिक भर्ती करने चाहिये

हमारी सरकार को याद होना चाहिये कि अग्रेजो का शासन क्‍यो बुरा था
क्‍योकि वो बेगार लेते थे
बाकी सब बेकार की बात है देश के संसाधनो पर पहले अग्रेजो का कब्‍जा था अब किसका कब्‍जा है कम से कम हम सविंदा कार्मिको का तो देश के संसाधनो का कोई हक नहीं है क्‍योकि जब हमारा खुद पर कोई अधिकार नहीं है तो अन्‍य किसी चीज पर हमारा कोई हक है ये सोचना भी नादानी है


बन्‍धुवा मजदूर की नई परिभाषा

आज के दौर में जब सब चारो ओर तकनीकी प्रगति का शोर है तब बन्‍धुवा मजदूर का स्‍वरूप भी बदल गया है आज बन्‍धुवा मजदूर का नया नाम संविदा कार्मिक या contract labour  हो गया है     सबसे ज्‍यादा बन्‍धुवा मजदूर महात्‍मा गान्‍धी के और ग्राम्‍य विकास के नाम पर बनाये गये है अगर आपको काई शक हो तो खुद जान लीजिये कि महात्‍मा गॉंधी रोजगार गारँटी योजना में योजना को क्रियान्वित करने वाले सभी कर्मी सविंदा कर्मी है जिनका भयानक शोषण हो रहा है
क्‍योकि योजना में रूट लेवल पर गडबडी सामान्‍यत ग्राम प्रधान ,  ग्राम विकास अधिकारी या पंचायत अधिकारी करते है लेकिन रोजगार सेवक या तकनीकी सहायक को सविंदा कर्मी होने के कारण उनकी बात मानने पर मजबूर होना पडता है अन्‍यथा अगले वर्ष उसकी संविदा समाप्‍त कर दी जाती है
सभी विभागो के सविंदा कर्मियो की यही व्‍यथा है कि हर साल सविंदा करने के कारण उनकी मजबूरी है कि उनके उच्‍च अधिकारी जैसा कहे वैसा ही वो करने को मजबूर है

सामान्‍यत अधिकाश विभागो में कम्‍प्‍यूटर कर्मी अवश्‍य ही संविदा पर रखे जाते है जबकि कम्‍प्‍यूटर कार्मिक सामान्‍यत उच्‍च शिक्षित व विश्‍लेषणात्‍मक क्षमता वाले होते है लेकिन संविदा पर कार्य करने के कारण उनमें हीन भावना घर कर जाती है

शेष अगली बार