Wednesday 12 October 2011

षडयन्‍त्र

शोषक समाज आम जनता के साथ किस किस तरह से षडयन्‍त्र करके उनका शोषण करता है इसका आज मै एक छोटा सा उदाहरण देना चाहता हूँ ।

नृत्‍य तथा संगीत
नृत्‍य तथा संगीत सांस्‍कृतिक कलायें है किन्‍तु शोषक वर्ग के हाथों में जाकर और राज्‍य द्वारा कोई नियन्‍त्रण न होने के कारण यह वासनाप्रधान कलाओं में तब्‍दील हो गई है।  नृत्‍य तथा संगीत  सास्‍ंक;तिक कला होने के कारण बाल ,वृद्व,  व नर नारी सभी के मन में इनके लिये रूचि उत्‍पन्‍न की जाती है।  तथा इनमें चुपके से वासना की चाशनी मिला दी जाती है । जिससे इन कलाओं के वासनामय होने के कारण समाज में वासना व्‍याप्‍त होने लगती है। और इसका दुष्‍प्रभाव सबसे ज्‍यादा बच्‍चो और श्रमिक वर्ग पर पडता है।
तथा वासनात्‍मक कार्यो के लिये धन की आवश्‍यकता होती है और अतिरिक्‍त धन सही कार्यो से नहीं मिलता फलस्‍वरूप अतिरिक्‍त धन के लिये  अधर्मयुक्‍त उपाय प्रयोग में लाये जाते है। जिससे समाज का नैतिक पतन हो जाता है और वह शोषक वर्ग व रूलिंग वर्ग के अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति खो देता है।  और तब वह केवल और केवल धन के पीछे दौडने लगता है तब शोषक वर्ग उसका आसानी से शोषण करने में सक्षम हो जाता है।

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