Saturday 1 October 2011

सविंदा कार्मिक

समाजवादी लोकतन्‍त्र का दावा करने वाले देश की सरकार देश की बेरोजगारी दूर करने के लिये क्‍या प्रयास कर रहीहै इसकी पोल इसी बात से खुल जाती है कि देश में सविंदा प्रथा को बढावा दिया जा रहा है ।
रोजगार व्‍यक्ति की प्राथमिक आवश्‍यकताओ , सामाजिक दायित्‍वों एवं स्‍तर को निर्धारित करता है यदि सक्षम व्‍यक्ति को कार्य नहीं मिलता हे तो समाज उसे हेय दृष्टि से देखने लगता है बेरोजगार स्‍वंय को भी हीन समझने लगता है
आजकल देश के विभिन्‍न विभागो और राज्‍य सरकारो के विभागो में तथा सरकारी , अर्धसरकारी व प्राइवेट कम्‍पनियों में सविंदा पर देश का युवा कार्य करने को विवश है ।
अक्‍सर सेवा प्रदाता नई भर्तिया कर लेता है जिसमे पैसे व आयु का बडा रोल होता है
सविंदा मजदूरी और कुछ नहीं बल्कि बंधुवा मजदूरी का विकसित रूप है
क्‍योकि सविंदा मजदूरी में मजदूर की कम कीमत लगाई जाती है , सेवायोजक अतिरिक्‍त लाभ नही देते, अवकाश के दिनो मेंभी कार्य लिया जाता है सबसे बुरी बात अगले वर्ष सविंदा न होने की अव्‍यक्‍त धमकी दे कर मानसिंक उत्‍पीडन किया जाता है
सविंदा श्रमिक अक्‍सर अपने पारिवारिक उत्‍तरदायित्‍व पूरे नही कर पाते क्‍योकि सेवायोजक की संविदा रूपी तलवार हमेशा उनके सामने रहती है

समस्‍त सरकारी व प्राइवेट संस्‍थानो में कार्य की अपेक्षा कर्मचारियों की सख्‍ंया कम है ऐसी स्थिति में कार्य का बोझ सविंदा श्रमिको पर ही पडता है   ।   सविंदा श्रमिक आने वाले स्‍थयित्‍व को लेकर हर समय सशंकित रहते है क्‍योकि धन कमाने की एक आयु होती है और उनके जीवन का अधिकतर समय अल्‍प वेतन और आने वाली बेरोजगारी के भय तले ही गुजर जाता है

सरकार द्वारा रोजगार देने की ये विधि युवाओ के लिये नरक तुल्‍य अभिशाप बन चुकी है
सबसे बडा दुख ये है कि करोडो युवाओ की यह समस्‍या न तो कोई श्रमिक यूनियन उठाती है न मीडिया और न  ही खुद संविदा कर्मी इस समस्‍या को उठाने का साहस कर पाते है क्‍योकि वे आनेवाली बेरोजगारी के भय से चुप रहते है

श्रमिक यूनियने इस समय खुद मृतप्राय हो चुकी है और वे खुद भी संविदा कार्मिको को अपना सदस्‍य नहीं मानती ।

भारतीय संविधान बंधुवा मजदूरी को तो गैरकानूनी मानता है लेकिन बंधुवा मजदूरी के परिष्‍तृत संस्‍करण  के बारे में चुप है  साफ जाहिर है कि पूजीपति वर्ग ने सविंधान को धोखा देने में कामयाबी हासिल की है

लोकप्रिय सरकारो को चाहिये कि यदि किसी काम विशेष को करने के लिये श्रमिको की आवश्‍यकता निरन्‍तर कम से कम 5 वर्षे से है तो उस कार्य के लिये सविंदा और आकस्मिक श्रमिको की भर्ती को अपराध माना जायें और इसअपराध के लिये दोषी अधिकारियों के विरूद्व बधुवा मजदूरी को बढावा देने का दोष लगाया जाये  तथा 5 वर्षो से अधिक समय से कार्य कर रहे समस्‍त आकस्मिक व संविदा कर्मचारियों को नियमित घोषित किया जाये
अन्‍यथा सविंधान का पालन करानी वाली शक्तियों को चाहिये कि वो बंधुवा मजदूरी के इस रूप पर ध्‍यान दे   और युवाओं को नये तरीकों से बंधुवा मजदूर बनाने वाले समस्‍त कारको को समाप्‍त कराये
नहीं तो इन युवाओं के लिये सविंधान के बंधुवा मजदूरी उन्‍मूलन 1976 का क्‍या मतलब
या फिर गुलामो के कोई हक नही होते
 
आज 2 अक्‍टूबर है
 
आज हम सारे सविंदा और आकस्मिक कर्मचारियों के नाम से जाने जाते वाले बधूंवा मजदूर  दिल से याद करते है कि कि काश कोई गॉंधी हमें भी आजादी दिलाता

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