Wednesday 11 June 2014

क्‍या अच्‍छे दिन आयेगें बन्‍धुवा मजदूरो के

संविदा श्रमिक आज के दौर की सच्‍चाई है अगर आप संविदा श्रमिक है तो आप इस दर्द को अच्‍छी तरह से जानते होगें कि किस तरह विकास और आधुनिकता का रावण उनका खून पीकर अपने सोने की लंका को और चमकदार बनाता जा रहा है । सबसे दुख की बात तो ये हैकि संविदा श्रमिक अपने हितो की लडाई भी नही लड सकता क्‍योकि ऐसा करने पर उसकी सविदा समाप्‍त कर दी जाती है। धिक्‍कार है येसी रावणी व्‍यवस्‍था पर कई सालो पर लगातार काम करने पर एक व्‍यक्ति संविदा पर ही रहता है। और मात्र एक बार सासंद या विधायकी की शपथ लेने वाला ताउमर पेंशन का हकदार हो जाता है।

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